What is the reason behind the defeat of Congress?

कांग्रेस की हार किसकी वजह से?

What is the reason behind the defeat of Congress?

What is the reason behind the defeat of Congress?

कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपनी हार की समीक्षा में जुटी है, कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं और कुछ का इंतजार है। हालांकि चार राज्यों में मिली हार पार्टी को इतनी नहीं चुभ रही है, जितनी कि पंजाब में मिली पराजय। पंजाब कांग्रेस शासित राज्य था, बड़े वादों-इरादों और योजनाओं के बाद यहां चुनाव लड़ा गया, लेकिन आखिरकार बेहद शर्मनाक हार पार्टी को मिली। अब पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्वीकार किया कि उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मिली शिकायतों को नजरअंदाज किया था। कहा गया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को पहले ही हटा देना चाहिए था, इस पर सोनिया गांधी ने कहा कि वे ही कैप्टन का संरक्षण कर रही थीं, जबकि उनके खिलाफ लगातार शिकायतें आ रही थीं। यह बात तब सामने आई है, जब कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अजय माकन ने भी कहा कि यदि कैप्टन अमरिंदर सिंह को थोड़ा पहले ही हटा दिया जाता तो बेहतर होता।

माकन के हवाले से कहा गया है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को सितंबर 2021 में हटाया गया था, तब तक कांग्रेस सरकार के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी काफी बढ़ चुकी थी। वह राज्य में पार्टी की करारी हार को लेकर बात कर रहे थे।

  कांग्रेस नेताओं का यह कैप्टन राग अगर इस सुर में गाया जा रहा है तो पार्टी के बाहर बैठे लोगों को इस पर कोई यकीन नहीं हो रहा। चुनाव में हार के बाद ऐसे किसी नेता को तलाशा जाता है, जिसके सिर पर ठीकरा फोड़ा जा सके। कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता एवं मुख्यमंत्री को बेहद शर्मनाक तरीके से पद से हटा दिया और फिर उनकी जगह एक अपरिपक्व नेता को बैठा दिया। क्या सच में कैप्टन की वजह से कांग्रेस को हार मिली है। बेशक, मुख्यमंत्री रहते कैप्टन के खिलाफ उनके विरोधी सक्रिय थे, लेकिन इसके बावजूद वे कांग्रेस के भरोसेमंद चेहरे थे। सोनिया गांधी ने कैप्टन की शिकायतें कर रहे नेताओं से यह पूछने की कोशिश शायद नहीं की कि उनकी शिकायतों का आधार क्या है। वे चार साल पहले पार्टी में आए नवजोत सिंह सिद्धू की भी सुनती रहीं, जिनका एकमात्र लक्ष्य कैप्टन को कुर्सी से हटा कर उनकी जगह लेना था। उन्होंने अपना यह लक्ष्य पूरा भी कर लिया, लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। मुख्यमंत्री न बन पाने की उनकी टीस ने चुनाव में न चरणजीत सिंह चन्नी को चैन लेेने दिया और न ही दूसरे उम्मीदवारों को। ऐसे में महज कैप्टन पर ऐसे आरोप लगाना, न केवल अपनी भूलों पर पर्दा डालना है, अपितु हालात का पूरा आकलन किए बगैर लिया गया निर्णय भी है।

   कांग्रेस की इस हार के हीरो सिद्धू पर भी पार्टी नेतृत्व नाराज है। हालांकि बीते वर्ष सिद्धू जब कांग्रेस आलाकमान से लगातार मिल रहे थे। सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली जा रही थीं, तब पंजाब और देश के लोग यह सोच कर ताज्जुब कर रहे थे कि क्या सच में सिद्धू के पास कोई जादुई पावर है, जिसके जरिए वे पंजाब में फिर से कांग्रेस का राज ले आएंगे। उस समय कांग्रेस आलाकमान सिद्धू से इतना मुग्ध नजर आ रहा था, कि उसने पार्टी के उन दूसरे वरिष्ठ और भरोसेमेंद नेताओं के बारे में सोचा तक नहीं, जोकि प्रदेश अध्यक्ष पद पर बेहतरीन विकल्प होते और मुख्यमंत्री पद के लिए भी। आलाकमान ने सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया लेकिन सुनील जाखड़ जैसे नेता को पीछे धकेल कर। उस समय किसी ने भी यह आवाज नहीं उठाई कि उनको पद से हटा कर कांग्रेस हिंदू वोट की हानि कर रही है। पार्टी के इस कदम से यह संदेश भी गया था कि उसने हिंदू वोट की परवाह नहीं की। खैर, कांग्रेस में कब, कौन, कहां क्या फैसला ले और फिर वही लागू हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अब राहुल गांधी की तारीफ हो रही है, क्योंकि उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर पंजाब और पूरे देश में कांग्रेस के लिए एक एसेट तैयार की। कहा जा रहा है कि राज्य के ही टॉप नेताओं ने उनकी टांग खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पार्टी ने हार की वजहों में से एक इसे भी माना है। यह भी कहा गया है कि राहुल गांधी ने जब एक साधारण परिवार से आने वाले नेता चन्नी को समर्थन किया और सीएम फेस घोषित किया तो सिद्धू के परिवार ने उन्हें अमीर बताते हुए पार्टी की संभावनाओं को कमजोर किया। हालांकि इस आरोप के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व प्रवर्तन निदेशालय की उस कार्रवाई पर कुछ नहीं बोल रहा, जोकि चन्नी के एक नजदीकी रिश्तेदार पर हुई। रेत खनन के मामले में 9 करोड़ रुपये की रकम उनके रिश्तेदार के आवास से बरामद की गई थी। क्या पंजाब की जनता इस मामले पर आंख बंद कर सकती थी? तब ऐसे मामलों को भी पार्टी अपनी हार की वजह क्यों नहीं मान रही।

   कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी की सरकार की ओर से सितंबर 2021 तक कुछ नहीं किया गया, जिन्हें लेकर 2017 में तमाम वादे किए गए थे। बेअदबी और ड्रग्स जैसे मुद्दे उठाते हुए कहा गया कि कैप्टन सरकार के दौर में इन पर कुछ नहीं हुआ था। यही वजह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह पटियाला में बड़े अंतर से पराजित हो गए। कांग्रेस कार्यसमिति में कहा गया कि अकाली नेताओं पर कैप्टन अमरिंदर सिंह नरम थे और दोनों को ही इलेक्शन में नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस से लोग इस बात को लेकर नाराज थे कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने में उसने इतनी देरी क्यों कर दी। दरअसल, कांग्रेस को पंजाब में ही अपनी हार का दुख नहीं मनाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में हार के लिए वह किस कैप्टन और सिद्धू की तलाश में है, वहीं उत्तराखंड और मणिपुर, गोवा में भी फिर उसे उन कैप्टन और सिद्धू की तलाश होगी, जिनके सिर पर हार का ठीकरा फोड़ा जा सके। कांग्रेस आलाकमान के लिए यह समय गंभीर आत्मंथन का है, बेहतर यह होगा कि अब कांग्रेस खुद को रिवाइव करे और नेतृत्व परिवर्तन हो।